आपको 2019 में अबू धाबी में आयोजित हुआ स्पेशल ओलंपिक खेल तो याद होगा ही.. हां वहीं जिसमें भारत ने 368 पदक जीते थे और उसमे भी 85 स्वर्ण पदक, 154 रजत पदक और 129 कांस्य पदक के साथ भारत ने अंक तालिका में तीसरा स्थान हासिल किया था। सच में उस साल भारत का प्रदर्शन काबिलियत तारीफ था लेकिन जिन खिलाड़ियों ने उसमें योगदान दिया, वे भी काफ़ी तारीफ के काबिल है। आज हम बात करेंगे उसी स्पेशल ओलंपिक के एक ऐसी खिलाड़ी की जिसने उन खेलों के दौरान पावरलिफ्टिंग में 1 स्वर्ण और 3 रजत पदक जीतकर कमाल कर दिया लेकिन वे आज गुमनाम की तरह जिंदगी जी रही है। जी हम बात कर रहे हैं हरियाणा की मुस्कान गर्ग की, जिन्होंने बचपन से ही संघर्ष के साथ लड़ते हुए हार नहीं मानी और सामाजिक तानो बानो को पीछे छोड़ते हुए अबू धाबी में तीन सिल्वर और 1 गोल्ड मेडल जीतकर पूरी दुनिया का मुंह चुप करा दिया। आइए उनकी कहानी जानते हैं उन्हीं की जुबान बन चुकी उनकी मां नीना गर्ग से…
मुस्कान की मां नीना बताती हैं कि “मुस्कान जन्म से ही काफी दुर्बल थी और ढाई साल की उम्र तक कुछ खा पी नहीं पाती थी। चार साल तक की उम्र तक भी मुस्कान ने चलना नही सीखा था। नीना जी ने इस संबंध में डॉक्टरों का परामर्श लेना चाहा लेकिन डॉक्टरों ने इसे सामान्य बताया तब नीना ने कुछ समय तक शांति बनाए रखी। लेकिन जैसे जैसे समय आगे बढ़ रहा था मुस्कान को लेकर नीना की चिंताएं भी बढ़ती जा रही थी।
स्कूल में दाखिले के बाद भी मुस्कान पढ़ नहीं पाती थी और ऊंचा सुनती थी। तब जाकर नीना को यह अहसास हुआ कि मुस्कान एक स्पेशल चाइल्ड हैं। दरअसल मुस्कान बौद्धिक रुप से अक्षम थी। लेकिन नीना यह बात मानने को तैयार नहीं हुई जबकि उनके अन्य 2 बच्चे तो सामान्य थे फिर मुस्कान कैसे… लेकिन जब नीना और उनके पति के बीच इस बात को लेकर कहासुनी होने लगी तब नीना ने अपने पति से अलग होने और मुस्कान की जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया, जो कि उस समय नीना के लिए एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन कहते हैं न कि मां अपने बच्चों के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती सहने से नहीं डरती। फिर नीना कैसे हार मान सकती थी।
समाज के आगे मुस्कान की ढाल बनी नीना
पति से अलग होने के बाद भी नीना की समस्याएं कम नहीं हुई। अब तो समाज ने भी मुस्कान से मुंह फेरना शुरू कर दिया था। बच्चे मुस्कान के साथ खेलने से मना करने लगे, तो मुस्कान ने भी घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। मुस्कान को यह डर सताता था कि लोग उसका मजाक बनाते हैं। एक मां के नाते नीना को भी यह चिंता रहती कि मुस्कान के भविष्य का क्या होगा? और कही कोई मुस्कान की इस अक्षमता का गलत फायदा ना उठाए। तब नीना ने यह निर्णय लिया कि मुस्कान को अब नॉर्मल स्कूल से स्पैशल स्कूल में डालना चाहिए।
और मुस्कान को स्पैशल स्कूल में डालने का फायदा हुआ भी… यहां उसे रसोई कला, सिलाई के अलावा स्पोर्ट्स में भी ध्यान दिया गया। मुस्कान ने स्केटिंग, नेटबॉल, फ्लोरबॉल जैसे कई खेलों में अपनी रुचि और क्षमताओं को विकसित किया।
शुरुआत से ही रही गोल्ड मेडल पर नजर
मुस्कान ने पहली बार 2016 में हरियाणा का प्रतिनिधित्व करते हुए फ्लोरबॉल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद भी कई अन्य खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले मुस्कान ने मेडल्स जीत सबको चौंका दिया। लेकिन किसे पता था कि मुस्कान अब रुकने वाली नहीं है। नीना बताती हैं कि अलग – अलग खेल प्रतियोगिताओं में मुस्कान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना कठिन साबित होता था। उस समय आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से नीना ने मुसकान को स्कूल से भी निकलवा दिया। लेकिन परेशानियां देख मुसकान के भाइयों ने भी मोर्चा संभाला और मां को अपना पूरा ध्यान मुस्कान पर देने के लिए कहा, साथ ही हर आर्थिक सहयोग का आश्वासन भी दिया।
यह देख नीना ने भी मज़बूत होते हुए मुस्कान को अकेले ही कई जगहों पर प्रतियोगिताओं में भाग लेने को भेजा। इन प्रतियोगिताओं के दौरान नीना मुस्कान से बात तक नहीं करती थी ताकि मुस्कान का पूरा ध्यान खेल पर ही रहे।
फिर एक दिन आया जब नीना को कॉल आता हैं कि मुस्कान का चयन वर्ल्ड स्पैशल ओलंपिक 2019 के लिए हो गया है और अब उसे अबू धाबी में जाना होगा। दिल पर पत्थर रखकर नीना ने एक बार फिर मुस्कान को खुद से दूर सात समुंदर पार देश का नाम रोशन करने के लिए भेजा। और मुसकान ने भी नीना को निराश नहीं किया। मुस्कान ने वेटलिफ्टिंग में करीब 7 हजार प्रतिभागियों से भिड़ते हुए 1 गोल्ड और तीन सिल्वर मेडल जीतकर न केवल समाज में उसके लिए पनप रही विरोध की भावना को शांत किया बल्कि विश्व पटल पर भी भारत का नाम रोशन कर दिया।
मेडल जीतने के बाद रुख तो बदला पर ज्यादा देर तक नहीं
जब मुस्कान अबू धाबी से मेडल जीतकर लौट आई तो नीना की खुशी का ठिकाना नहीं था मानो उसकी इतने सालों की तपस्या का फल उसे मिल गया हो। नीना की आंखों में खुशी के आंसू थे। समाज और रिश्तेदार भी अब मुस्कान की तरफ़ सम्मान से देखने लगे थे। अब हर कोई अपने बेटे या बेटी को मुस्कान की तरह खेल में भाग दिलाना चाहता था। सरकार की तरफ़ से भी मुस्कान को सहयोग तो मिला पर वह नाकाफी था। अगर भारत की बात करें तो यहां एक ओलंपिक पदक विजेता को मिलने वाली सुविधाएं वैसे भी अन्य देशों की तुलना में अपर्याप्त है। सिंगापुर जैसा देश भी अपने देश के लिए ओलंपिक पदक जीतकर आने वाले हर खिलाड़ी को करीब 7,37,000 डॉलर जो कि भारतीय रुपयों में करीब 6 करोड़ रुपए है। वहीं अमेरिका ओलंपिक पदक विजेता को करीब 37,500 डॉलर की राशि देता है। चीन और तुर्की जैसे देश भी पीछे नहीं हैं। वहीं भारत की बात करें तो यह राशि केवल 75 लाख रुपए (अधिकतम) हैं। लेकिन मुसकान को भी केवल 14 लाख को इनामी राशि ही दी गई। इसके साथ ही सरकारी नौकरी का वायदा भी केवल मीडिया सुर्खियों में आने का बहाना सा बन गया है क्योंकि अब तक कितने स्पेशल ओलंपिक पदक विजेताओं को इसका लाभ मिला है, यह भी स्पष्ट नहीं है।
नीना सरकार और समाज को सन्देश देती हुई कहती हैं कि चाहे बच्चा स्पैशल हो या नॉर्मल लेकिन हमें उसके अंदर की स्पेशलिटी को पहचानना चाहिए और उसे बढ़ावा देना चाहिए। सरकार को भी ओलंपिक पदक विजेताओं और अन्य खिलाड़ियों के साथ समान व्यवहार करते हुए उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए।
Reporting for True to Life
Mohit Sabdani from Rajasthan
Truetoliferegional dosen’t take any responsbilty for this article