अति प्राचीन मानी जाने वाली नगरी “काशी” की हर गली में मंदिर के साथ – साथ मस्जिद भी देखने को मिलती हैं, आदिकाल से ही काशी अपनी गंगा – जमुनी-तहज़ीब के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध रही है, यहां की एकता की मिशाल हर जगह दी जाती है, ये भी कहा जाता है, पुरे बनारस में धर्म के नाम पे तलवारें कभी नहीं चली हैं, जहां 1992 में पुरा भारत धर्म के नाम पे जल रहा था, वहीं उत्तर प्रदेश का बनारस इस आग से दूर था, हालांकि पुरे भारत में अलगाव की ये आग उत्तर प्रदेश के ही एक छोटे से कस्बे से उठी थी, सदियों पहले औरंगजेब की जिद्द सालों बाद लोगों के मरने की वजह बनी|
ये कहानी है, बनारस के एक संकरी गली में स्थित, एक ऐसे मस्जिद की जिसकी रखवाली एक हिन्दू शख्स करता है, सुनने में ये बहुत अजीब लगेगा पर सच्चाई यही है, जहां एक तरफ पुरे दुनिया में धर्म के नाम पर किसी का सिर काटते देर नही लगता, वहीं ऐसी कहानी मिशाल कायम करती है |
ये कहानी है, बनारस के चौकंभा गली में स्थित अनार वाली मस्जिद की जिसकी रखवाली पिछले 40 सालों से एक हिन्दू इंसान कर रहा है, जहां जवानी में लोग अपनी गृहस्थी बसाने में लगे होते हैं, उन दिनों में ये शख्स पुरे विश्व के लिए मिशाल कायम कर रहा था, एक ऐसा मिशाल जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता , इस शख्स का नाम है, बेचन यादव जो की पिछले 40 सालों से एक मस्जिद की रखवाली कर रहे हैं |
बनारस की गलियों में, मैं एक अलग, अनोखी, अनसुनी कहानी के लिए भटक रही थी, तब मैं इस कहानी से रूबरू होती हूं, जब मुझे किसी ऐसे कहानी के बारे में पता चलता है, तो मैं बिना देर किए, इस कहानी को शब्दों के साथ – साथ, ख़ुद के ज़हन में भी क़ैद करने को आतुर हो जाती हूं | मुझे सिर्फ़ मस्जिद का नाम पता था, बनारस की संकरी गली में ये कहां स्थित है, इसकी सटीक जानकारी मुझे भी नही थी, तो क्या भाई कहा जाता है, बनारस गुरुओं का शहर है, यहां हर कोई ज्ञानी है, तो सभी ज्ञानियों से पूछते – पूछते आखिरकार, मैं अपने मंजिल पर आ ही गयी, एक पतली सी गली जिसमें सामने मस्जिद का मुख्य द्वार दिख रहा था और मुख्य द्वार से सटे दीवार के पास एक बिस्तर लगा हुआ था, जिस पर लगभग 70 के उम्र के एक बुजुर्ग सोए हुए थे, जैसे मैं गली में आती हूं, वैसे ही एक छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाले भईया, मुझसे मेरा परिचय पूछते हैं और परिचय जानने के बाद बताते हैं की बाबा तो अभी सो रहे हैं, आप बाद में आइएगा इंटरव्यू के लिए, इतनी गलियों को पार कर आई , मैं बिना कहानी को क़ैद किए वापस जाने के मूड में बिल्कुल भी नहीं थी, मैंने भईया से निवदेन किया की बहुत दूर से आई हूं, प्लीज उन्हें उठा दीजिए, मेरे निवदेन के तरीके से भईया भी शायद मेरी आतुरता को समझ गए और जाकर बेचन बाबा को जगाने लगे, एक आवाज़ पर ही बाबा उठ गए, मैं उनके बिस्तर के पास जाकर उनसे जब कहती हूं की बाबा, मैं आपके कहानी को जानने आयी हूं, आपका इंटरव्यू लेने आयी हूं, ये सुनकर बाबा हल्की मुस्कान लेके, मुझे मस्जिद के बरामदे में आने को कहते हैं और वहां जाकर चटाई बिछा कर बैठ के इंटरव्यू लेने का आमंत्रण देते हैं।
True to life से बात करते हुए, बेचन यादव बताते हैं की “ मैं पिछले 40 सालों से इस मस्जिद की रखवाली करते आ रहा हुं, मेरे दादा जी मेरे पिता जी भी इसकी रखवाली करते थे, मैं चौथी पीढ़ी हुं, जो इसकी रखवाली कर रहा हूं |
मैं बचपन से यही रहा पला, बढ़ा पर कभी भी धर्म के नाम पर किसी को मरते – मारते नहीं देखा, इस मस्जिद में हिन्दू भी आते है, ईसाई, अंग्रेज भी आते है, बगल में ही मंदिर भी है, मंदिर की आरती और मस्जिद की नमाज़ यहां एक साथ होती है, हम हिन्दू थे, फिर भी कभी हमें धर्म के नाम पर प्रताड़ित नही किया गया है, हम सभी शुरू से ही अमन चैन से रहे हैं, मेरे पिताजी शुरू से इस मस्जिद की रखवाली किए हैं, मैं उनके साथ आता था, यही खेलता था, मेरी माता जी भी यहीं मस्जिद की सेवा में लगी रहती थीं, मेरे माता- पिता दोनों ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में, निष्ठा से इस मस्जिद की सेवा की है और काशी की गंगा – जमुनी तहज़ीब को बनाए रखा, तभी से मैंने भी ठान लिया था, की उनके बाद इस मस्जिद की रखवाली मैं करूंगा”
इस मस्जिद के नाम के पीछे की कहानी पर बेचन यादव true to life को बताते हैं की “ इस मस्जिद में सालों पुराना अनार का पेड़ है, जिसके वजह से इसका नाम अनार वाली मस्जिद से प्रसिद्ध हो गया ।
ये एक ऐसी कहानी है जो प्यार, इंसानियत, एकता की एक अटूट मिशाल कायम करती है ।
बनारस से स्मिता के द्वारा