आज की समूची दुनिया मशीनों पर निर्भर है फिर वो चाहे एक तलवार बनाना हो या फिर एक छोटी सी सुई, मशीनों के इस दुनिया में हाल ही में आया AI आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धि) | Ai ने इंसानों का ही नही बल्कि मशीनों का भी काम आसान किया, दुनिया चांद, मंगल पर पहुंच चूकी है , हर काम के लिए आज का इंसान मशीनों पर निर्भर है ,फिर चाहे वो पानी गर्म करना हो या फ़िर पानी को बर्फ बनाना हो | टीवी, एसी के रिमोट से लेकर सफर को आरामदायक बनाने वाले हवाई जहाज़ तक इंसान मशीनों पर निर्भर है पर ये कहानी इस मशीनों के दुनिया से परे है | ये सच्चाई भरी कहानी हाथो के कारीगरी की है ,ये कहानी है बनारस के अस्सी गली में रहने वाले सैय्यद माजिद अली की।
मैं पहुंचता हूं, काशी की अस्सी गली में, इस संकरी गली में लगभग 500 मीटर अंदर जाने पर मेरे दाईं तरफ मुझे दिखती है, एक बहुत छोटी सी पुरानी दुकान, इस छोटी सी दुकान पर एक जंग लगा ताला खुलने के इंतजार में लटक रहा था, और मैं ढूंढ रहा था, इस दुकान में बैठने वाले उस कारीगर को जिसकी हाथ की कारीगरी को मैं अपने शब्दों और कैमरे में क़ैद करने आया था। काफ़ी देर तक एक अजनबी को अपने दुकान के पास खड़ा देख, मेरे पास एक लगभग 6 फीट लंबा शख्स आता है, बड़ी सफेद दाढ़ी, सफेद पठानी कुर्ता पैजामा पहना, वो इंसान मुझसे मेरा परिचय पूछता है, जब उन्हें पता चलता है की, मैं उन्हीं के इंतजार में खड़ा था, तब वो तुंरत अपनी दुकान खोलते हैं और मुझे अंदर आने का आमंत्रण देते हैं। जमीन से लगभग दो फीट ऊपर बिना सीढ़ी के बने दुकान पर चढ़ कर मैं अंदर जाता हूं, जहां मैं देखता हूं की छोटी सी वो दुकान आधी खाली होती है, आज के साज सज्जा से भरे दुकानों की इस दुनिया में, मैं एक ऐसे दुकान में खड़ा था, जहां मेरे सामने एक छोटी सी स्टूल रखी हुई थी और मेरे दाईं तरफ बने सीमेंट के रैक पर एक बहुत पुरानी रेडियो रखी हुई थी और नीचे जमीन पर बहुत से कपड़ों के टुकड़े पड़े हुए थें और उसी टुकड़ों के बीच में एक लकड़ी का कुनबा रखा हुआ था, जिसपे माजिद अली हाथों से कपड़ों के बैच बनाते हैं, वहां पड़े कपड़ों के टुकड़ों पर हर तरह के डिजाइन मुझे देखने को मिल रहे थें और उन कला – कृतियों को देख ऐसा बिल्कुल भी नही लग रहा था, की ये मशीनों से नहीं हाथों से बनाए गए हैं| एक पीले कपड़े के छोटे से टुकड़े पर मुझे बड़ा सा ताजमहल भी दिख जाता है, जहां असली संगमरमर का बना ताजमहल अपनी चमक खो चुका है, वहीं पीले कपड़े पर सफेद धागों से बना ये ताजमहल अपनी चमक बखूबी बिखेर रहा था।
40 सालों से हाथों से बना रहे हैं तमगा –
इस Ai, मशीनों की दुनिया में सैय्यद माजिद अली पिछले 40 सालों से अपने हाथों से कपड़ों के बैच बनाते है ,वो अपने खानदान के इस हुनर को पिछले 40 सालों से ज़िंदा रखे हुए है, माजिद अली के हाथों से बनाए गए बैच सिर्फ भारत में ही नही बल्कि विभिन्न देशों में भेजे जाते है।
True to life से बात करते हुए, माजिद अली बताते है की “ मैं अपने बच्चों को भी चाहता हूं की वो मेरे जाने के बाद इस खानदानी हुनर को आगे बढ़ाए इसे जिंदा रखे पर आज के वक्त में सब को ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना है इसलिए मेरे बच्चे सीखना नही चाहते इस हुनर को क्योंकि इसमें प्रॉफिट नही है वो कहते हैं की मेरे जिंदगी में सबसे सबसे बढ़िया काम मुझे लगा जब मैने इंग्लैड के पॉप का पवित्र कपड़ा बनाया जिसे बनाने में मुझे 6 महीने से ज्यादा का वक्त लगा वो मेरा सबसे बढ़िया काम था” शुरु में जो काम माजिद अली ने शौक से करना सीखा उन्हें ये नही पता था का ये काम उन्हे पूरे शहर में एक अलग पहचान बना देगा।
40 से भी ज्यादा देशों में भेजे जाते हैं –
True to life से बात करते हुए, माजिद अली बताते हैं की उनके हाथ से बनाए गए ड्रेस बैच अभी तक 40 से ज्यादा देशों में भेजे जा चुके है और वो इस कम प्रॉफिट में भी सरकार को टैक्स देते हैं ,माजिद अली स्कूल की बैच से लेकर सिर्फ भारतीय सेना नहीं बल्कि अमेरिका, चीन, रूस, जैसे विभिन्न देशों के सेना के बैच बना चुके हैं, माजिद अली सिर्फ कपड़ों पर ही नही बल्कि लोहे के तमगे भी हाथ से ही बनाते है।मशीनों के दुनिया में हाथ से तमगे बनाने पर आने वाले कठिनाइयों के सवाल पर माजिद अली जी ने कहा की “ जिस काम में मज़ा आता हो उसे करने में कठिनाइयों के लिए कोई जगह नहीं बचती। माजिद अली जैसे हाथ के जादूगर भारत में और भी जगह अपने हाथों की जादूगरी दिखा रहें हैं ,जैसे राजस्थान के श्योपुर में लाख की नगीना जड़ी चूड़ियां पूरे विश्व में प्रसिद्ध है देश के कोने-कोने में श्योपुर की बनी चूड़ियां बहुत पसंद की जाती है |
सैय्यद माजिद अली का ये हुनर इस बात को चरित्राथ करता है की बनारस की हर गली हुनर से भरी है।
~ बनारस से अभय के द्वारा