ज़माना कोई भी हो, वो फिर चाहे आज का दौर हो या पहले का, पैसा-दौलत सब को प्यारी
होती है, हर इंसान की चाह होती है की वो कम समय में करोड़पति बन जाए, बहुत लोग की
चाह ये भी होती है की बिना मेहनत किए बस अच्छा खासा बैंक बैलेंस बना लें और इस चाहत को पूरा
करने के लिए सब के तरीके अलग अलग होते हैं, करोड़पति बनने के लिए कोई गलत काम
करता है तो कोई जादू – टोटके पर विश्वास, लेकिन अगर किसी को ये पता चले की इस दुनिया में
कहीं एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है, जहां दर्शन मात्र से ही इंसान हर तरीके की समृद्धि को
आसानी से पा सकता है, तो कोई भी इंसान इस मंदिर में जाने से खुद को रोक नहीं पाएगा
बनारस डायरी के सातवें एपिसोड की कहानी इसी अनोखे मंदिर की है, जो काशी के दुर्गाकुंड में
स्थित है।
बनारस डायरी की अनोखी कहानियां –
बनारस डायरी के हर एपिसोड में मेरी कोशिश यही रही की बनारस डायरी की हर पन्नो पर काशी की जो भी कहानियां हो, वो अनोखी हों और कई हद तक मेरी कोशिश सफल भी रही पर बनारस डायरी के सातवें एपिसोड को मैं यादगार बनाना चाह रही थी , क्योंकी सातवां एपिसोड बनारस डायरी का सिर्फ एक एपिसोड ही नहीं था , बल्कि ये बनारस डायरी के पहले सीजन का आखरी एपिसोड भी था , इसीलिए सातवें एपिसोड में , मैं काशी की ऐसी अनोखी कहानी को जोड़ना चाह रही थी , जिस कहानी के बारे में दुनिया क्या खुद काशी के लोगों को भी ना पता हो, ऐसी कहानी की तलाश में , मैं जुट जाती हूं और लगभग 10 दिनों तक इधर उधर भटकने के बाद अनोखी कहानी की मेरी तलाश खत्म होती , और मैं अपनी true to life टीम के साथ पहुंच जाती हूं, बनारस के दुर्गाकुंड क्षेत्र के खोजवां में जहां मौजूद है, कौड़ी माता का मंदिर। इस मंदिर का नाम सुन के ही, मैं इस मंदिर की कहानी को बनारस डायरी के सातवें एपिसोड में जोड़ने के लिए उत्सुक हो जाती हूं। आज तक बहुत मंदिरों के नाम सुने थे पर किसी मंदिर का ऐसा नाम मैं पहली बार सुन रही थी , नाम सुनने के बाद इस मंदिर के नाम के पीछे के इतिहास को जानने के लिए मैं काफी आतुर थी ,और अपनी आतुरता को कम करने के लिए इस बार मैं गूगल का सहारा ना लेके मंदिर के आस पास रहने वाले स्थानीय लोगो का सहारा लेती हूं।
स्थानीय लोगों से पता चलता है की ऐसी मान्यता है की कौड़ी माता मंदिर में कौड़ी प्रसाद स्वरुप चढ़ाने से इंसान करोड़पति बन जाता है, साथ ही इन्हें बाबा विश्वनाथ ने अपनी बड़ी बहन भी माना था , ऐसा भी कहा जाता है की अगर बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद कौड़ी माता का दर्शन कोई नहीं करता है, तो उसकी काशी यात्रा अधूरी होती है। इतनी सब जानकारी
के बाद मेरी आतुरता और बढ़ जाती है , की आख़िर इन सब बातों मे कितनी सच्चाई है और कितनी मिथ्यता अपने जिज्ञासा को कम करने और कौड़ी माता मंदिर के इतिहास की सच्चाई जानने, मैं पहुंच जाती हूं, कौड़ी माता मंदिर के महंत मनीष तिवारी जी के पास ।
काशी में शूद्रों से हुई थी अपमानित –
True to Life से बात करते हुए महंत मनीष तिवारी बताते हैं की “इनकी शुरुआत दक्षिण भारत में हुई थी , ये देवी ब्रह्मचारणी से उत्पन हुई थीं , कौड़ी माता जब काशी भ्रमण करने आई थीं , तो माता का सामना शूद्रों से हुआ था और शूद्रों ने माता को अपमानित कर दिया था , जिससे नाराज़ होकर, देवी काशी खंड में स्नान करने चली गईं, जब भी वो स्नान करके बाहर आतीं , तब उन्हे कोई अपमानित कर देता ,बार बार अपमानित होने के बाद देवी भूखी प्यासी सिर्फ स्नान करतीं , जिसे देख माँ अन्नपूर्णा कौड़ी माता से पूछती हैं की तुम ऐसा क्यों कर रही हो, तुम कहाँ से आई
हो, तब कौड़ी माता अपनी व्यथा बताती हैं, जिसके बाद मां अन्नपूर्णा नाराज होकर, इन्हे भोजन के तौर पर कौड़ी खाने को देती हैं, तभी से इनका नाम कौड़ी माता पड़ गया, परंतु इसके बाद भी कौड़ी माता को यहां कोई नही जानता तह जिससे क्षुब्ध होकर कौड़ी माता बाबा विश्वनाथ के पास जा कर अपनी व्यथा सुनाती हैं की “मैं दक्षिण से आयीं हूं, जब से आई हूं, यहां अपमानित ही हुई हूं, जिसके बाद बाबा विश्वनाथ ने इनको अपनी बड़ी बहन का स्थान दिया ,और ये वरदान
भी दिया है की दक्षिण भारत से आया कोई भी भक्त अगर मेरे दर्शन के बाद मेरी बड़ी बहन का दर्शन नहीं करता है तो उसकी काशी यात्रा अधूरी मानी जाएगी ।
कौड़ी रखने से धन की कमी नहीं होती –
True to Life को महंत मनीष तिवारी बताते हैं की “ यहां भक्त प्रसाद के तौर पर और माता के भोग के तौर पर पांच कौड़ी चढ़ाते हैं और पांच कौड़ी में चार कौड़ी दान करते हैं , और एक कौड़ी घर ले जाते हैं और ऐसी मान्यता है की वो एक कौड़ी घर के पूजा स्थल पर रखने से घर में कभी भी गरीबी नहीं आती, हमेशा धन की पूर्ती घर में होती रहती है” ।
बनारस से स्मिता के द्वारा
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